खबर लहरिया बुंदेलखंड महोबा जिले के 200 परिवार शौक में नहीं मज़बूरी में बनाते है बीड़ी

महोबा जिले के 200 परिवार शौक में नहीं मज़बूरी में बनाते है बीड़ी

जिला महोबा, गांव कुलपहाड़, 25 अक्टूबर 2016। कुलपहाड़ गांव में रहने वाले 200 परिवार, खासतौर से महिलाएं और बच्चे, बीड़ी बनाने का काम करते हैं। स्वास्थ्य के नजरिये से खतरनाक इस काम में ये लोग अपनी मजबूरी के कारण लगे हुए हैं, बीड़ी बनाने के अलावा दूसरा कोई रोजगार नहीं है इनके पास। इस काम में इस गांव के बच्चे 10 साल की उम्र से ही लग जाते हैं। बच्चों का इस काम में आने की वजह अपने परिवार की आर्थिक मदद करना है।

बीड़ी बनाने से होने वाले बुरे असर के बारे में ये सभी लोग जानते हैं -। चन्दा, उम्र 40,  इस काम से होने वाली परेशानियों के बारे में बताती हैं, “आंखों में जलन रहती है और गले से सीने तक दर्द की परेशानी होती है।” चन्दा की आंखों की परेशानी इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि उन्हें दूर से आता हुआ इंसान दिखाई नहीं देता है। पर घर चलाने के लिए चन्दा और उसके बच्चे ये काम कर रहे हैं क्योंकि उनके पति मामूली मजदूरी करते हैं।

तम्बाकू की गंध और जर्दे से इस काम में लगे लोगों की सेहत दिन-व-दिन बेकार होती जा रही है। मानकुंवर, उम्र 48, जिनके पति शराब में सारा पैसा उड़ा देते हैं, कहती हैं, “मैं अपने पति को पीने से रोकती हूं तो वह मुझे मारते हैं, इसलिए इस बेकार काम को करके पैसा कमाती हूं, जिससे पति से पैसा नहीं मांगना पड़ता है और मैं उनकी मार से बच जाती हूं।” मानकुंवर इस काम को छोड़ना तो चाहती हैं पर दूसरा कोई रोजगार गांव में नहीं मिलने की वजह से छोड़ नहीं पा रही हैं।

पहले मजदूरी का काम करने वाली तारन, उम्र 40, आज घर से बीड़ी बनाने का काम कर रही हैं। वह कहती हैं, “जैसे-तैसे घर चल रहा है। हम जितना काम करते हैं, उसके हिसाब से पैसे कम मिलते हैं।” इस उद्योग में लगे लोगों को 1100 बीड़ी बनाने पर मात्र 80 रुपये ही मिलते हैं। बीड़ी बनाने का काम बच्चों और महिलाओं के द्वारा ज्यादा किया जाता है, क्योंकि वे कम पैसों में ज्यादा काम कर लेते हैं। गांव की सभी महिलाएं अपने छोटे बच्चों को साथ में लेकर इस काम को करती हैं क्योंकि वे ये काम घर से ही करती हैं और एक ही घर में बच्चों को इस काम से कैसे दूर किया जा सकता है। इस काम में लगी नेहा, उम्र 12, और शोभा, उम्र 14, दोनों बचपन से ही बीड़ी बनाने का काम कर रही हैं। उन्होंने ये काम 10 साल की उम्र से शुरूकर दिया था। शोभा बताती हैं, “मेरे पिता ने अपनी आंखें यहीं काम करते हुए खराब कर दी थी।”

स्वास्थ्य में हो रहे बुरे प्रभाव के कारण इस उद्योग में लगे सभी लोग दूसरा रोजगार मिलने पर इसे छोड़ने को तैयार हैं,पर गांवों में रोजगार की कमी है और अधिकतर महिलायें अनपढ़ हैं, जिसके कारण बीड़ी बनाना इनकी मज़बूरी है

रिपोर्टर- श्यामकली

24/10/2016 को प्रकाशित