खबर लहरिया चुनावी दंगल 2017 चुनावी जंग में जुटे पांच राज्यों में स्वास्थ्य का मुद्दा

चुनावी जंग में जुटे पांच राज्यों में स्वास्थ्य का मुद्दा

साभार: रॉयटर्स/ रेइनहार्ड क्रॉस

जन स्वास्थ्य को राजनीतिक दल अकसर नजरअंदाज करतें हैं, लेकिन वर्ष 2004 से प्रमुख दलों ने अपने चुनावी घोषणापत्रों में स्वास्थ्य का जिक्र करना शुरु किया है।
वर्ष 2014 के लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ राज्यों में स्वास्थ्य बड़ी तेजी से एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। वर्ष 2009 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई. एस. आर. रेड्डी के दूसरे कार्यकाल के लिए गरीब परिवारों के लिए राजीव आरोग्यश्री सामुदायिक स्वास्थ्य बीमा योजना की महत्वपूर्ण भूमिका रही। रिपोर्ट में गुजरात के चिरंजीवी योजना की चर्चा भी की गई है। इस योजना के तहत निजी क्षेत्र के सहयोग से गर्भवती महिलाओं के लिए कुशल स्वास्थ्य सेवा प्रदान किया जाता है।
2015 की लैंसेंट रिपोर्ट के अनुसार, राजनीतिक और आर्थिक बहस के लिए भी स्वास्थ्य सेवा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा और निजी स्वास्थ्य खर्च हर वर्ष भारत में 5.5 करोड़ लोगों को गरीबी की ओर ले जाता है।
हालांकि, वर्तमान में स्वास्थ्य से संबंधित राजनीतिक चर्चा प्रमुख स्वास्थ्य घोटाले और गंभीर महामारी फैलने के दौरान राज्य की विफलता तक ही सीमित हैं। आमतौर पर स्वास्थ्य मुद्दों पर अब तक कोई भी चुनाव न तो लड़ा गया और न ही जीता गया।
भारत में अब भी किसी अन्य देश की तुलना में कद की तुलना में कम वजन और उम्र की तुलना में कम कद बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। भारत में ऐसे बच्चों की संख्या करीब 4 करोड़ है। पिछले 14 वर्षों के दौरान भारत के ग्रामीण इलाकों में मोटापे की दर में 8.6 गुना वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं पिछले 20 वर्षों में भारतीय शहरी क्षेत्रों में यह वृद्धि 1.7 गुना रही है।
भारत की आधी से ज्यादा ग्रामीण आबादी निजी स्वास्थ्य सेवा का उपयोग करती है। निजी स्वास्थ्य सेवा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की तुलना में चार गुना अधिक महंगा है। निजी स्वास्थ्य सेवा भारत की 20% सबसे ज्यादा गरीब आबादी पर उनके औसत मासिक खर्च पर 15 गुना ज्यादा बोझ डालता है।
इस साल, जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें 18 वर्ष की आयु से पहले शादी हो चुकीं 20 से 24 वर्ष की उम्र की महिलाओं की संख्या में गिरावट हुई है। लेकिन मणिपुर में ऐसा नहीं है। वर्ष 2016 और 2017 में जारी वर्ष 2015-16 के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की रिपोर्ट के अनुसार, मणिपुर में ऐसी महिलाओं की संख्या 12.7% से बढ़कर 13.1% हो गया है। वर्ष 2015 में, गोवा की तुलना में पंजाब में 18 वर्ष की आयु से पहले शादी होने वाली महिलाओं का प्रतिशत और भी कम था। पंजाब में ये आंकड़े वर्ष 2005 में 19.7 फीसदी से कम होकर वर्ष 2015 में 7.6 फीसदी हुए हैं। गोवा में अब भी 9.8 फीसदी ऐसी महिलाएं हैं, जिनकी शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो चुकी हैं।
नवीनतम एनएफएचएस के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2005 से 2015 के बीच, मणिपुर में जन्म के समय लिंग अनुपात 1,014 से गिरकर 962 हुआ है। उत्तराखंड में भी जन्म के समय लिंग अनुपात में गिरावट दर्ज की गई है। गोवा और पंजाब में भी सुधार देखा गया है। उत्तर प्रदेश के लिए एनएफएचएस डेटा अब तक जारी नहीं किए गए हैं। सरकार के नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) रिपोर्टों से पता चलता है कि वर्ष 2011 से 2014 के बीच उत्तर प्रदेश में जन्म के समय लिंग अनुपात में गिरावट हुई है। ये आंकड़े 875 से गिरकर 869 हुए हैं।
उत्तराखंड में शिशु मृत्यु दर में सबसे धीमा सुधार देखा गया है। हालांकि उत्तर प्रदेश के लिए एनएफएचएस के लिए आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं। फिर भी एसआरएस के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2011 से 2014 के बीच उत्तर प्रदेश का आईएमआर 57 से 48 हुआ है। इसका मतलब है कि वर्ष 2005 और 2015 के बीच एनएफएचएस आंकड़ो में सुधार दिखेगा।

साभार: इंडियास्पेंड