खबर लहरिया चित्रकूट चित्रकूट में पंचायत चुनाव में लोकतंत्र का खेल

चित्रकूट में पंचायत चुनाव में लोकतंत्र का खेल

वार्ड क्रमांक 10 की महिला सीट के लिए इकतीस प्रत्याशी हैं जिनमें से भाजपा सांसद भैरों प्रसाद की बहू एकता मिश्रा है, और दलित महिला (चमार जाति से) जावित्री देवी भी है। क्या सत्ता और संसाधन की जीत होगी, या फिर गरीब और दबी हुए जातियों का बहुमत ? यह जानने के लिए खबर लहरिया ने एक दिन प्रत्याशी जावित्री देवी के साथ बिताया।

  जावित्री पच्चीस साल की हैं। वो कर्वी ब्लॉक के कसहाई गांव से हैं। आठवीं तक पढ़कर उनकी शादी हो गई, पर जावित्री ने कहा,  उस ही घर में शादी करना जो मुझे पढ़ाएंगे।’ उनकी जिद की वजह से ससुराल में इंटर तक पढ़ने को मिला, पर वो स्कूल नहीं गई। परीक्षा भी घर से हो पाई। जब हमने उससे पूछा कि जहां वो घर से निकलकर स्कूल न जा पाई, वहां चुनाव लड़ने के बारे में कैसे सोचा और क्यों? ’जब पता चला कि महिला सीट है, तो मैंने घर में खाना खाते समय मजाक में कहा कि मुझे खड़ा कर दो! और ऐसा ही हुआ। मुझे समाज की सेवा करनी है, और महिलाओं पर जो अत्याचार देखती हूं, उसे कम करना चाहती हूं।’

  जावित्री के चुनाव के पर्चों पर पहले सिर्फ उनकी फोटो थी, पर बाद में उनके पति भी पर्चों पर दिखने लगे। ’वो दस साल से यहां नेतागीरी कर रहे हैं, तो लोग उनको अच्छे से जानते हैं। मैं तो कभी घर से नहीं निकली हूं, तो मुझे कैसे लोग जानेंगे ?’ पति रज्जन कुमार भारतीय दलित संगठनों और राजनीती से जुड़े हैं, और इसपर उनकी लम्बी राय हैं। ’मेरे मामा श्रीकृष्ण आजाद जी ने चित्रकूट में बसपा के लिए जमीन तैयार की, पर उच्च जाति और सत्ताधारी लोगों की वजह से वो चुनाव न जीत पाए।  अब तो बसपा की सीट भी पचास लाख या एक करोड़ दिए बिना नहीं मिलती।

इस चुनाव में जावित्री देवी का समर्थन बहुजन मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष बिशम्बर नाथ कबीर कर रहे हैं। चुनाव प्रचार कबीर जी और रज्जन जी ही कर रहे थे, एक दिन पहले तक, जब जावित्री ने रज्जन जी को कहा, ’अगर मुझे खड़ा किया है तो मीटिंग और प्रचार के लिए मुझे भी ले जाना चाहिए।’ हम कई घंटों तक कबीर जी और उनकी बोलेरो के इंतजार में जावित्री जी से बतियाते रहे। अपनी किराये की गाड़ी कर पाते तो अपने टाइम से निकल पाते, पर अब क्या करें, साहबजी के टाइम पर चलना होता है।

  हमने जावित्री के अभी तक के चुनाव के अनुभव के बारे में पूछा। ’सिर्फ नामांकन के लिए गए थे – आदमी ही आदमी थे।  चुनाव चिन्ह जब मिल रहा था तो हमने साहबजी को फोन करके कहा कि हम जाकर ले लें।  उन्होंने बोला ले लेंगे, मेरे आने की जरुरत नहीं है। अब आदमी कहे, तो महिलाओं का क्या जोर होता है? पर जब बाहर निकलते हैं, लोगों से मिलते हैं, तब ही जान पाएंगे। जैसे, साहबजी को बोला भी था कि बारह बजे के बाद क्षेत्र में जाएंगे तो कोई नहीं मिलेगा, लोग कटाई में लगे हैं। गांव खाली मिलता है। जल्दी निकलना चाहिए, प्रचार अच्छा होगा। यह भी कहा था कि लाउड स्पीकर लगाएं तो ठीक रहेगा, पर उनका कहना है कि क्या जरुरत है?’

हमने जावित्री से वार्ड क्रमांक 10 में कम्पटीशन के बारे में पूछा । ’हमने सुना है कि एकता मिश्र में पच्चीस – तीस गाडि़यंा लगी हैं, और सांसjavitriद पैसे देकर वोट बटोरेंगे। अभी बड़ी पार्टियंा ये करती हैं। लोक सभा चुनाव में भी यह होता है, और फिर यह बड़े नेता फिर से कभी नहीं दिखने हैं।’

 चार घंटे बाद, साहबजी पहुंचे, और उन्हें पूड़ी खिलाकर हम प्रचार के लिए निकले।  रंग बिरंगे छाता (जावित्री का चुनाव चिन्ह) पकड़कर जावित्री देवी समेत उनके परिवार की महिलाएं दलित बस्ती में जल्दी जल्दी, नारे लगाते हुए, प्रचार करने लगीं। जावित्री ने एक नए प्रत्याशी और स्वयं प्रचार करनी वाली महिला के रूप में आत्मविश्वास से अपना परिचय किया। ’आगे मुझे और पढ़ना भी है, अगर बैलेंस हो। पर पहले देखते हैं कि चुनाव का क्या माहौल है – गरीब तो छाता से काफी प्रभावित हैं ! उम्मीद है की हमारा समर्थन करेंगे।’