खबर लहरिया अतिथि कॉलमिस्ट चर्चाएं, नई नज़र से – सन्नाटा क्यों है, पसरा

चर्चाएं, नई नज़र से – सन्नाटा क्यों है, पसरा

purva Bharduaj

पूर्वा भारद्वाज

पूर्वा भारद्वाज लंबे समय से जेंडर, शिक्षा, भाषा आदि मुद्दों पर काम कर रही हैं। साहित्य में उनकी खास रुचि है। इन दिनों वे दिल्ली में रह रही हैं।

अभी शब्दकोश लेकर बैठी हूं। सन्नाटा शब्द कैसे बना है  यह जानना चाहती हूं।
आम तौर पर जहां कोई हरकत नहीं हो, कोई आवाज नहीं हो उसे हम सन्नाटा कहते हैं। लेकिन क्या यह सबसे पहले कुछ नहीं होने को बताता है? यह भयानक स्थिति है। शायद इसलिए सन्नाटा पसरने से घबराहट होती है। अब चाहे दादरी में सन्नाटा हो या दिल्ली में या बुंदेलखंड में ! मतलब साफ है कि सन्नाटे का कारण होता है। कोई ऐसा वैसा नहीं, बल्कि जबरदस्त कारण. चाहे वह घर के भीतर का सन्नाटा हो या इंसान के भीतर का या कौम के भीतर का। सन्नाटा कब, क्यों और कहां छाता है, इस पर गौर करना जरूरी है। सन्नाटे के कारण को खोजने से लोग परहेज करते हैं। उनको लगता है कि तब ताकतवर की ओर उंगली उठने लगेगी। या तब जो सत्ता में है उसकी शिनाख्त की जाएगी। इससे दिक्कत हो सकती है।
हिंसा से सन्नाटे का तार जुड़ता है। वह खुशनुमा की आंखों के सन्नाटे में दिखता है। जी हां, वही खुशनुमा जो नोमान की बहन है! हिमाचल प्रदेश की रहनेवाली। उसके भाई नोमान को कुछ लोगों ने गोरक्षा के नाम पर पीट पीटकर मार डाला था। या इरोम शमिर्ला की आंखों पर गौर कीजिए! वहां भी सन्नाटा दिखेगा। सच पूछिए तो सन्नाटा खतरनाक होता है। इसलिए बेहतर है कि सन्नाटे की कद्र की जाए। हो सके तो उसकी महिमा का बखान किया जाए। समझदार लोग सन्नाटे को शान्ति मानने को कहते हैं। लेकिन हम जानते हैं कि सच्चाई यह नहीं है। सन्नाटे में है सूनापन, खालीपन। जब सन्नाटा गलियों, चैराहों और शहरों में फैल जाता है तब कैसा लगता है, याद कीजिए। कर्फ्यू जैसा दृश्य लगता है!
तब सन्नाटा चुऽाता है। छटपटाहट होती है। वैसे में हम इंतजार करते हैं कि सन्नाटा टूटे। कोई कोई न कोई चीखे। मगर सन्नाटे को कौन तोड़ेगा? यह अहम सवाल सामने होता है। हम सब एक दूसरे का मुंह देखते हैं। हम खुद पहल क्यों नहीं करते हैं ? सन्नाटे से आंख चुराने से कुछ नहीं होनेवाला। दिल में भी वह दफन नहीं होनेवाला है। किसी न किसी को सन्नाटा तोड़ना ही पड़ेगा, नहीं तो जीना दू ार हो जाएगा।