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चर्चाएं, नई नज़र से – इन्हें कुछ तय सपने देखने की इजाज़त

15-04-15 MM - Charchaayein - EMP 1 (Aru) webअरू बोस निरन्तर संस्था में काम करती हैं। 2014 में संस्था ने सात राज्यों में बाल विवाह और कम उम्र में युवाओं की हो रही शादियों पर एक रिपोर्ट तैयार की। अरू भी इस टीम का हिस्सा थीं।

बाल विवाह की वजहों को जानने और उनका विश्लेषण करने के लिए हाल ही में निरंतर संस्था ने सात राज्यों का सफर किया। हमने लड़कियों, लड़कों, उनके माता-पिता, प्रशासन और इन जगहों पर काम करने वाली संस्थाओं के लोगों से मुलाकात की। सारे पक्षों को जानकर हम इस मुद्दे को समझना चाहते थे।
इस पूरे सफर में मेरे लिए सबसे ज़्यादा रोमांचक था अलग-अलग राज्यों में बड़ी होती लड़कियों से बात करना। उनके सपनों, उनकी आकांक्षाओं के बारे में जानना। ऐसी ही एक लड़की थी सुगंधा। सुगंधा की शादी हो चुकी थी मगर गौना नहीं हुआ था। वह खुद भी बाल विवाह के खिलाफ काम करने वाली एक संस्था में काम करती थी। जब हमने उसके सपनों के बारे में पूछा तो पहले वह हंसने लगी, फिर ज़्ाोर देकर पूछने पर कहा – ‘मैं पढ़ना चाहती हूं। काम करना चाहती हूं।’ वह अपने ससुराल जाना चाहती थी। क्योंकि उसे लगता था कि वहां उसे आगे पढ़ने का मौका मिलेगा। मायके में पाबंदियों में रहने वाली सुगंधा को यह भी लगता था कि ससुराल में उसे बंधनों से छुटकारा मिलेगा। नौकरी, ऊंची पढ़ाई की इच्छा जाहिर करने वाली ज़्यादातर लड़कियों को अक्सर यह सलाह दी जाती है कि अब जो करना है अपने घर जाकर करना। अपना घर यानी ससुराल। शायद यहीं से सुगंधा जैसी कई और लड़कियां ससुराल का सपना संजोने लगती हैं।
कई लड़कियों से बात करने के बाद एक बात साफ नजर आई कि लड़कियों से उनके बारे में, उनके सपनों के बारे में, उनकी महत्वकांक्षाओं के बारे में पूछना मुश्किल है। जवाब देते समय लड़कियां अक्सर संकोच करती हैं। घबराती हैं। इसका कारण भी साफ है। कभी शादी और घर के काम के अलावा उनसे पढ़ाई उनके सपनों के बारे में पूछता भी कौन है? उनके एहसासों के बारे में कौन जानना चाहता है। कुछ लड़कियां खामोश बैठी रहीं क्योंकि उन्हें पता था कि अगर वह बोलीं तो भारी विरोध होगा।