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खुशहाली मांगता देश का अन्नदाता

साभार: बलराम

बड़े से बड़े चुनाव को जीतने की चाभी है देश का किसान, जिस कारण ही हर चुनाव में इस चाभी से ही सत्ता का बंद दरवाजा खोलने की कोशिश हमारी राजनीतिक पार्टियां करती हैं। तब ही तो भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में अपने लोक कल्याण पत्र में किसानों के कर्जमाफी का ऐलान किया था। चुनाव जीतने के फौरन बाद महंत से मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ ने लघु-सीमान्त किसानों का 1 लाख का कर्ज माफ करने का ऐलान कर दिया।
2016 से 2017 में लिए गये कर्ज की ही माफी इस सरकार ने दी। आपको बता दे कि प्रदेश में कुल 2.30 करोड़ किसानों की संख्या है, जिसमें 92.5 प्रतिशत किसान लघु और सीमांत हैं। 36 हजार करोड़ की कर्ज माफी के लिए पैसे जुगाड़ना भी प्रदेश सरकार के लिए भारी पड़ गया, जिसके कारण 1 से 100 रुपये कर्ज माफी वाले किसानों की संख्या 4814 है तो वहीं 100 से 500 रुपये तक कर्जमाफी वाले किसान 6895 है, 500 से 1000 रुपये कर्ज माफी 5553 किसानों की हुई, 10 हजार रुपये की कर्ज माफी 41690 है, 10 हजार से अधिक कर्जमाफी 11,27890 लाख किसानों की हुई। ये जानकारी प्रदेश सरकार ने खुद दी है।
7 मार्च से 12 मार्च तक चली किसान, आदिवासियों की नासिक से 180 किलोमीटर का पैदल मार्च मुंबई में आकर रुकी तो देश की वित्तीय राजधानी इस मार्च से हिल गई। ख़बरों में देखने  के बाद देशभर की जनता का ध्यान किसानों की बुरी स्थिति पर गया। केन्द्रीय सरकार इस मार्च को नजरांदाज करती रही। महाराष्ट्रीय सरकार के आश्वासन के बाद ये मार्च तो खत्म हो गया, लेकिन एक बात सबके जेहन में आकर रुक गई कि देश का किसान अगर अपने खेत को छोड़कर सड़क पर आ गया तो उनके साथ कर्जमाफी का ऐलान सत्ता का हर बार खेलने वाला खेल ही है।
हम आपको कुछ और किसान धरने की स्थिति और मांगे बताते हैं, जो शायद हमारे मुख्यधार की मीडिया ने कवर नहीं किए।

किसान आंदोलन

13 फरवरी को भारतीय किसान यूनियन ने राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत के नेतव्व में दिल्ली आकर महापंचायत की। देशभर के किसानों ने इसमें हिस्सा लिया। इसमें बुंदेलखंड से 25 हजार किसान आए। अपनी मांगों को लेकर एक ज्ञापन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू देकर ये किसान अपने घर चले गए। इनकी मांगें कितनी पूरी होंगी ये तो वक्त ही बताएगा। पर किसानों की बेचैंनी साफ देखने में आ रही है।
बुंदेलखंड के बांदा जिले में भी बुंदेलखंड किसान यूनियन का 7 मार्च से अनिश्चित कालीन धरना चल रहा है। धरने में बैठी चन्द्रकली कहती हैं, कि ये किसान लघु-सीमांत किसानों का कर्ज माफ करके किसानों में फूट डालना चाहती है, वृहत किसान को कर्ज माफी से दूर रखकर अलग कर रही है। हम 2019 में इस सरकार को जूते की माला पहन देंगे।
वहीं गणेश कुमार कहते हैं कि बुंदेलखंड में लघु-सीमांत किसानों का दायरा बढ़ाया जाए, क्योंकि सूखी जमीन होने के कारण यहां एक ही तरह की फसल होती है, अन्य इलाकों की तरह यहां कई फसले नहीं हो पाती है।
बुंदेलखंड किसान यूनियन के अध्यक्ष विमल कहते हैं कि कर्जमाफी के साथ ही सिंचाई के संसाधन, बिजली-पानी भी किसानों को दी जाए। साथ ही किसानों को उनकी फसल की सही कीमत भी मिलनी चाहिए। इन संसाधनों के अभाव में किसान तबाही की स्थिति में आ गया है।
ढाई गुना कम पैदावार वाली बुंदेली जमीन के कारण ये किसान 2 हेक्टेयर की लघु-सीमांत किसान की सीमा को बढ़ाकर 5 हेक्टेयर करने की मांग कर रहे हैं। इन किसानों का धरना 15 मार्च यानी ये लेख लिखने तक चल रहा है, पर उनकी आवाज प्रशासन के कानों तक अभी तक नहीं गई है। जब देश का अन्नदाता इतना बेचैन हो तो हमारे मुंह में निवाला जाने में भी थोड़ी टिस होनी ही चाहिए। बाकी जनसेवकों से क्या उम्मीद करें वे तो राजनेता हैं और राजनेता राजनीति ही करता है, जनसेवा नहीं।

– अल्का मनराल