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खबरों का फर्जीवाड़ा

फर्जी खबरों को रोकने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कुछ दिशानिर्देशों के साथ एक सरकारी फरमान जारी कर दिया था। इस फरमान में फर्जी खबरें लिखने वाले पत्रकार की मान्यता को खत्म करने तक की बात थी। जो कहीं न कहीं फर्जी खबरों में नियन्त्रण करने से ज्यादा पत्रकारों पर नियन्त्रण लगाने वाला था। खैर, चारों तरह आलोचना होने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस फरमान को वापस ले लिया। साथ ही कहा कि फर्जी खबरों से मीडिया को नियंत्रण करने वाली संस्था निपटे।
फर्जी खबरों से निपटा आज के समय में मीडिया के लिए एक चुनौती है, वैसे ही जैसे एक समय में पेड न्यूज थी। लेकिन फर्जी खबरों को प्रसारित करने का पूरा दोष मीडिया को नहीं दिया जा सकता है, आज के समय में प्रकाशन के इतने प्लेटफार्म होने के कारण हर व्यक्ति जाने-अनजाने फर्जी खबर को बढ़ा रहा  है। फर्जी खबरों को बढ़ाने का काम वॉट्स ऐप भी कर रहा है, जहां कोई भी संदेश कम समय में कई लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के कई उदाहरण आपने भी वॉट्स ऐप में देखें होंगे, जैसे रोहिंग्या शरणार्थी के देश में प्रवेश के समय उनको नर मांस खाने वाला कहकर उनकी मदद का बहिष्कार करना या अभी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति संरक्षण कानून में बदलाव से उपजे विवाद पर लोगों ने आरक्षण के विरोध में खबरे बनी हो। हो सकता है,आपने भी इन खबरों के तथ्यों को जांचे बिना आगे बढ़ा दिया हो। खैर जब जवाबदेही नहीं होगी तो ऐसा होना लाजिमी भी है।
फर्जी खबरों को बढ़ाने का काम ऐसा नहीं है, कि मीडिया संस्थान नहीं कर रहे हैं, जी न्यू के सुधीर चौधरी की नोटबंदी के बाद आने नोटों पर चिप होने की खबर हो या छोटे इलाके की खबरें जैसे उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में 30 अक्टूबर 2017 को ये खबर फैल गई कि एक गाय के साथ बलात्कार हुआ है, इस खबर में कितनी सच्चाई थी ये जाने बिना कई पत्रकार बंधुओं ने इसे गौ माता के साथ दुष्कर्म की खबर बना दिया। धार्मिकता के नाम पर खबर चली भी बहुत। लेकिन आपको बता दें कि बांदा एक ऐसा क्षेत्र है, जहां महिला हिंसा और बलात्कार की घटनाओं का होना बहुत आम है और इन खबरों में कोई ध्यान भी नहीं देता है। वहीं जून 2017 में बांदा क्षेत्र से बुलेट रानी, रिवाल्वर रानी की खबर आग की तरह फैली। खबर का इतना तोड़-मोड़ था कि एक आम सी लड़की वर्षा को खलनायिका बना दिया। जबकि सच इतना था कि वो जिसे प्यार करती थी, उसकी सगाई के दिन वो धोखे से चली गई। जिसके बाद वर्षा और लड़के की बात हुई और वर्षा अपने घर चली गई। पर लड़का उसके बाद सगाई कार्यक्रम छोड़कर कहीं चला गया। पर मीडिया ने इसे अपहरण का मामला बनाकर बुलेट रानी, रिवाल्वर रानी कहानी की पठकथा लिख दी। ये दो फर्जी खबरों के उदाहरण थे।

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वर्षा साहू से मिलिए. आप शायद इनको बुलेट रानी के नाम से ही पहचानते हो? बस, यहीं तो दिक्कत है!

फर्जी खबरें प्रसारित करने का सारा दोष मीडिया को नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि कुछ समय पहले प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से बिहार बाढ़ के समय प्रधानमंत्री की तस्वीर की एडिटिंग भी फर्जी ही थी। अब ऐसे हाल में किसी एक को दोष देकर सार दोष उसके सिर पर फोड़ना अन्याय ही है। फर्जी खबरों पर नियंत्रण करना जरुरी है, लेकिन इस काम के लिए सरकारी हस्ताक्षेप स्वीकार नहीं है, क्योंकि देश में थोपा हुआ आपातकाल भी देश हित में ही था।

– अल्का मनराल

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