खबर लहरिया मनोरंजन देश के पहले बिस्किट की कहानी

देश के पहले बिस्किट की कहानी

1939

1947 से पहले पारले-जी की पैकिंग

देश के पहले बिस्किट पारले-जी को ज्य़ादातर लोगों ने बचपन में जरूर खाया होगा।
हाइवे के किनारे के ढाबों, गांव कस्बों की चाय की दुकान में आज भी लोगों की पहली पसंद यही बिस्किट हैं। शहरों में भी इसके खरीददार कम नहीं है। पर कभी आपका मन पारले-जी के पैकेट पर बनीं उस गोल मटोल बच्ची के बारे में जानने का नहीं होता? चलिए हम आपको पारले जी का सफर और इस बच्ची के बारे में कुछ मज़ेदार जानकारी देते हैं।

स्वाद का सफर parleg2

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नीरू देशपांडे

-यह बिस्किट 1939 से बनना शुरू हुआ था। तब इसका नाम ग्लूको बिस्किट था। अपना पल्लू संभालती एक औरत इसके पैकेट में बनीं थी।
-लेकिन आजादी के बाद इस बिस्किट ने अपना रूप बदला। सन 1947 को एक बच्ची यानी नीरू देशपांडे की फोटो इसमें डाली गई है।
-नागपुर की रहने वाली नीरू अब 65-66 साल की हो गई हैं।
-पारले जी के आगे जो जी लगा है, उसका मतलब ग्लूकोज से हैं।
-इतने सालों में केवल एक बाद बिस्किट के दाम बढ़े और केवल दो विज्ञापन बनें। पहला स्वाद भरे शक्ति भरे, वर्षों से…पारले जी…। दूसरा रोको मत टोको मत…रोको मत टोको मत…सोचने दो इन्हें मुश्किलों के हल…।