खबर लहरिया मनोरंजन कोर्ट ने कहा, उठो, लिखो, तुम्हें लिखना है और लेखक मुरुगन जी उठा…

कोर्ट ने कहा, उठो, लिखो, तुम्हें लिखना है और लेखक मुरुगन जी उठा…

14054137_1157856550937792_2558063580065681843_nदिसंबर 2014 में तमिल लेखक पेरूमल मुरुगन को अपने उपन्यास ‘मथोरुभागन’ के लिए जान से मार डाले जाने की धमकी मिली थी। जिसके बाद, जाति और धर्म के नाम पर लोगों ने उनकी किताबें जला दीं। पुलिस केस कर दिया गया और इन सबके चलते मुरुगन ने खुद को घर की दीवारों में कैद कर लिया। तब लेखक ने विरोध में कहा– “मर गया लेखक पेरूमल मुरुगन।”
पिछले महीने कोर्ट में उनकी किताब पर लगे रोक के ऊपर सुनवाई थी। कोर्ट के अनुसार, किताब में ऐसा कुछ नहीं है, जिससे मुरुगन को लिखने से रोका जाए। ‘लेखक मुरुगन को डरना नहीं चाहिए। उन्हें लिखना चाहिए। बल्कि लेखन का विस्तार और बढ़ाना चाहिए। भले ही लोग उनके कहने के तरीके से असहमत हो, मुरुगन को साहित्य के क्षेत्र में अपना योगदान रोकना नहीं चाहिए।’
और फिर, उन्नीस महीनों के बाद पेरूमल मुरुगन ने चुप्पी तोड़ी। लेखक के लिए यह पुनर्जन्म की तरह था। इस फैसले के बाद, 200 नई कविताओं के साथ मुरुगन अपनी नई किताब लेकर आए हैं। इस किताब का नाम है ‘एक कायर का गीत’। 22 अगस्त को दिल्ली में मुरुगन के किताब का प्रमोचन किया गया। इस अवसर पर पेरूमल मुरुगन ने एक छोटा लेख प्रस्तुत किया, जिसमे उन्होंने इन उन्नीस महीनो के बारे में लिखा है।
“मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि मेरी किताब का उद्घाटन दिल्ली जैसे महा शहर में होगा। इस मौके पर मैं खुश भी हूँ और उदास भी। उदास इसलिए क्योंकि इस किताब का जन्म ऐसे हालात में हुआ, जब मेरी किताब ‘मधोरुभागन’ पर रोक लगा दी गयी। तमिलनाडु के लेखकों ने, देश और कई साहित्यकारों ने मेरा समर्थन किया। आज मैं आपके सामने खड़ा हूँ, इन लोगों का शुक्रिया करने, जिन्होंने मेरे चुप्पी के बदले असहनीयता के खिलाफ आवाज़ उठाई।”
मेरी पहली चार किताबों में कुल मिलाकर 150 कवितायेँ है। लेकिन, मेरी पांचवीं किताब ‘मधोरुभागन’ में दो सौ से ज्यादा कवितायेँ हैं। मुझे लगता है कि अन्दर-ही-अन्दर कुछ हो रहा था जिसके कारण मैं इस तरह लिख पाया। मेरी किताब पर रोक लगाने के तीन महीने बाद मैंने कुछ नहीं लिखा था। ऐसा लगता था जैसे मेरी उंगलियाँ सुन्न हो गई थी। मैं ना पढ़ पाता था, ना लिख पा रहा था।”
“फरवरी 2015 में मैं अपनी बेटी से मिलने मदुरई गया। मैं अपने दोस्त के घर पर रुका था। दो कमरे थे, एक में किताबें भरी पड़ी थी, एक में पलंग था। पहले कुछ दिन मैं पलंग पर पड़ा रहा, थोड़े दिन बाद ऐसा लगा जैसे नदी ने जोर दिया और बाँध टूट गया। मैंने लिखना शुरू किया। और रुका नहीं। ‘एक कायर का गीत’ का जन्म कुछ इस तरह हुआ।”
“मैं आप लोगों का आभारी हूँ। आगे से पेरूमल मुरुगन को बोलने को ना कहिये। मैं चुप रहना चाहता हूँ, और सिर्फ लिखना चाहता हूँ। मैं आपसे सिर्फ किताबों के ज़रिये बात करूँगा।”