खबर लहरिया राजनीति कोर्ट की यह कैसी सलाह

कोर्ट की यह कैसी सलाह

courtचेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट के एक विवादित फैसले के कारण हंगामा मच गया है। बलात्कार जैसे मामलों में क्या अपराधी को नपुसंक बनाने का फैसला किसी सभ्य देश का हो सकता है? हाईकोर्ट ने 26 अक्टूबर को यह विवादित सलाह दी। कोर्ट ने कहा कि बच्चों से बलात्कार करने वाले लोगों को नपुंसक बना देना चाहिए। कोर्ट ने कहा बहुत से लोग इस बात से सहमत नहीं होंगे लेकिन परंपरागत कानून ऐसे मामलों में फिसड्डी साबित हो रहे हैं।
कोर्ट के इस फैसले की कड़ी निंदा भी हो रही है। कुछ लोगों का कहना है कोर्ट को ऐसे क्रूर फैसले सुनाने की जगह कानून व्यवस्था को सुधारने के फैसले सुनाने चाहिए।
जस्टिस किरुबकरण ने कहा कि बच्चों के साथ इस तरह की हरकतें देश में सज़ा के क्रूरतम मॉडल को आकर्षित करती हैं। बधिया करने का सुझाव बर्बर, बेहद सख्त लग सकता है लेकिन इस प्रकार के क्रूर अपराध ऐसी ही सज़ाओं के लिए माहौल तैयार करते हैं।
कोर्ट ने साफ कहा कि भारत के विभिन्न हिस्सों में बच्चों से सामूहिक बलात्कार की दिल दहला देने वाली घटनाओं को लेकर अदालत बेखबर और मूकदर्शक बनी नहीं रह सकती है।
जस्टिस एन किरुबकरण ने अपने आदेश में कहा कि बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम जैसे कड़े कानून होने के बावजूद बच्चों के खिलाफ अपराध जारी हैं। जस्टिस ने कहा कि अदालत का मानना है कि बच्चों के बलात्कारियों को नपुंसक करने से जादुई नतीजे देखने को मिलेंगे। रूस, पोलैंड और अमेरिका के नौ राज्यों में ऐसे अपराधियों को नपुंसक करने का कानूनी नियम है।
यह पहली बार नहीं जबकि इस तरह के विवादित बयान सामने आए हैं। इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी केंद्र से राज्य की कानून व्यवस्था का जि़म्मा उन्हें सौंपने के लिए कह चुके हैं। केजरीवाल ने कहा था कि बाल अपराधियों के साथ बड़ों जैसा ही बर्ताव करना चाहिए। दिल्ली के सेशन कोर्ट में जज रहे एस.एम. अग्रवाल ने 1984 के दौरान हुए दंगों में बलात्कार के मामले में कहा था कि अपराधी को बीच चैराहे में कोड़े लगवाने चाहिए।
सवाल यह उठता है कि क्या हम तालिबानी शासन चाहते हैं, जहां कोड़े मारना, पत्थरबाज़ी करके हत्या करना, बीच चैराहे पर फांसी देने जैसे तरीकों को अपराध खत्म करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है?