खबर लहरिया बाँदा कला का मोल नहीं

कला का मोल नहीं

रामप्रसाद उर्फ़ मुन्नाराही

रामप्रसाद उर्फ़ मुन्नाराही

जिला बांदा, ब्लाक महुआ, गांव खरौंच। आजकल बुन्देली कलाकारों को ढूंढना आसान काम नहीं। जो थोड़े बहुत हैं वे भी अपनी प्रतिभा को आगे लाने के लिए कठिन परिश्रम कर रहे हैं।
इनमें से एक हैं खरौंच गांव के रामप्रसाद उर्फ मुन्नाराही। इनका जन्म 1966 में एक गरीब घराने में हुआ था। इन्होंने छतरपुर जिले के रेडियो संगीतकार देशराज पटेरिया के साथ भी काम किया है। आगे बढ़ने के लिए पैसों की ज़्ारूरत ने इनके लिए दरवाज़्ो बंद कर दिए।
लेकिन कला अपने रास्ते ढूंढ लेती है। अब ये सरकारी विभागों के कार्यक्रमों में जागरुकता फैलाने के लिए नाटक और गीत के माध्यम से जुड़ते हैं। इनकी पांच लोगों की टीम का नाम सुमन संघकीर्तन मण्डल है जिसे कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है।

मुन्ना राही की कलम से
बदरा मोरे भगवान तू मानत काये नइयां?
मर रहे गरीब किसान तू मानत काये नइयां?
काढ़मूस के कर दई बोनी आशा थी हो जाएगी दूनी,
आज सूने पड़े खलिहान तू मानत काये नइयां?
चैपट हो गई पूरी किसानी, घर में बैठी बिटिया सयानी,
कैसे हो कन्यादान, तू मानत काये नइयां?
अब तो बिनती सुनो हमारी, रोय रही जनता सारी,
कहे मुन्ना राही प्रधान, तू मानत काये नइयां?