खबर लहरिया खेल कबड्डी कबड्डी कबड्डी…

कबड्डी कबड्डी कबड्डी…

फोटो साभार : रिचर्ड हीथकोट

फोटो साभार : रिचर्ड हीथकोट

‘मैं तो खेलन गई भरूवा रेत मुदरिया मोरी खो न गई…’ ऐसे गाने दषहरे से दिवाली के बीच गांवों की महिलाएं रात में गाती हैं और अपने स्थानीय खेलों को बडे़ मजे़ के साथ खेलती हैं। इन खेलों मेें कबड्डी और पिलउहल सबसे जानेमाने हैं।

कबड्डी का खेल चन्द्रमा के उजाले में खेला जाता है। गांव की महिलाएं खासकर इस सुहाने मौसम मे यह खेल खेलती हैं। महिलाएं साड़ी की फेड़ बांध कर तो कुछ महिलाएं मर्दांे के कपड़े पहन कर आज़ादी से खेलती हैं।

जिला बांदा, ब्लाक महुआ, गांव नाई की पैंसठ साल की सियादुलारी बताती हैं कि रात में सारे आदमी सो जाते हैं तो कुछ औरतें मोहल्ले से महिलाओं को बुला कर इकट्ठा करती हैं। सभी औरतें दो गुटों में बंट जाती हैं और बीच में पाला खींचती हैं। खेल में कोई गड़बड़ी न हो उसके लिए बुज़ुर्ग महिलाओं को जज बनाया जाता है। इन्हीं में से कुछ औरतें गाने गा कर खिलाडि़यों का हौंसला बढ़ाती हैं।

जैसे जैसे खेल में रंग जमता है, सभी इस खेल में इतना रंग जाती हैं कि उनको रात का पता ही नहीं चलता है।
जिला चित्रकूट के बालापुर गांव की नीता कहती हैं कि दषहरे के बाद रात में बीस से पच्चीस महिलाएं कबड्डी और खा खो खेलती हैं। इन खेलांे को गांव की बूढ़ी औरतें देखने आती हैं।