खबर लहरिया बुंदेलखंड ऐसे बनती है खबर

ऐसे बनती है खबर

kavita

[इस लेख में ऐसे फोटोग्राफ हैं जिन्हें देखकर आप परेशान हो सकते हैं]

खबर लहरिया की झाँसी की रिपोर्टर लाली की बहन कविता ने 18 अगस्त 2016 के दिन फांसी लगा कर अपनी जान ले ली। 13 साल की कविता परिवार की सबसे छोटी सदस्य थी। लाली के परिवार में माँ, बापू, दद्दू, पांच बहनें और एक भाई है। 18 अगस्त को सभी लोग इकठ्ठा हो रहे थे, रक्षा बंधन के लिए। लाली अपने ससुराल से झांसी आ रही थी और उसकी दूसरी बहन कर्वी से झांसी आ चुकी थी, जब यह दुखद खबर मिली।

परिवार में किसी को अब भी नहीं पता कि कविता ने अपनी जान देने का फैसला क्यों लिया। अचानक परिवार की एक सदस्य की मौत होने पर अभी तक परिवार सदमे की ही स्थिति में है। पोस्ट मोर्टेम की रिपोर्ट भी नहीं आई है और न ही कुछ और जानकारी मिली है। मगर कुछ स्थानीय अखबारों ने कविता की दुखद मौत का पूरा कारण जान लिया।
20 अगस्त की सुबह के अमर उजाला में इस हेडलाइन के साथ खबर निकली है: ‘बिना राखी बंधवाये जाने पर बहन ने लगाई फांसी’ इसी दिन के दैनिक जागरण में इस हैडलाइन के साथ खबर निकली है: ‘किशोरी ने फांसी का फंदा लगाकर की आत्महत्या: भाई के राखी न बंधवाने पर बहन ने दी जान’। दैनिक भास्कर की खबर यहाँ आप देख सकते हैं.

aatm hatya2तीनों ही खबरें पूरी तरह से काल्पनिक हैं। 18 अगस्त की सुबह कविता की मौत के बाद जब परिवार के लोग स्थिति को समझने की कोशिश कर ही रहे थे तब ये पत्रकार उनके घर आ पहुंचे। हर तरह के सवालों की बौछार होने लगी – ‘क्या हुआ था’? पूरे परिवार की तहकीकात करने में लगे थे। किसी ने भाई से सवाल करना शुरू कर दिया -‘आपको कैसा लग रहा है भैया? इस साल राखी नहीं बाँधी?’

खबर लहरिया उसी क्षेत्र में पंद्रह साल से ज़मीनी स्तर की रिपोर्टिंग करता आया है, लेकिन अपने ही क्षेत्र के मीडिया के लोगों के इस रवैये को देखकर हम दंग रह गए। 19 अगस्त की सुबह जब हम अपनी साथी पत्रकार लाली का ढाढस बाँधने पहुंचे तो वहां उस दिन भी पत्रकार आये। किसी ने फाइल फ़ोटो मांगीं तो कोई बोले – “ये तो बड़ा मामला है। रक्षा बंधन के दिन ऐसी घटना घटी है । ये तो इतना बड़ा त्यौहार है, आप तो जानते ही हैं।” पूरा परिवार कहता रहा – “हमें खुद नहीं मालूम कि क्या हुआ, आप चले जाइए, हमें कोई खबर नहीं छपवानी।” लेकिन इन मीडिया वालों को कहानियां लिख पाने से हम भी नहीं रोक पाए।

परिवार ने जो बयान दैनिक जागरण को दिया, वो उन्होंने नहीं छापा। न पुलिस का कोई स्टेटमेंट था, न ही कोई ऑफिसियल रिकार्ड। ‘भाई चॉक्लेट लेकर आया’, ‘राखी की थाली सजी रह गई’, ‘पांच बहनों में एकलौता भाई था’ …बस यूं बनी खबर।

20 अगस्त को जब परिवार के कुछ सदस्य और हम कविता के स्कूल गए तो वहां भी टीचर ने हमसे पूछा – “कविता के भाई के साथ कोई समस्या थी? अखबार में ऐसा पढ़ा हमने। हमें तो पता ही नहीं था। वो कितनी खुश और समझदार थी, हमेशा आगे।” अखबार की फैलाई अफवाह के बारे में हम लोगों को बता रहे हैं। सबका यही कहना है – ‘आप तो मीडिया वालों को जानते है। सब साले ऐसे ही होते है।’

क्या स्थानीय मीडिया को ख़बरों की इस हद तक कमी हो गई है कि ऐसे संवेदनशील मामलों को सनसनी खबर के रूप में पेश किया जा रहा है? त्यौहार की स्पेशल खबर बनाने के चक्कर में मीडिया ने एक लड़की की आखरी यादों को कुचल दिया है। स्थानीय मीडिया समुदाय के होने के नाते हमें मीडिया के इस रुख पर रोष और शर्मिंदगी है।