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उम्मीदों के साठ साल और झुग्गीवासियों का सब्र

6c783440-ee29-4055-b97d-3d284374a785 copyलखनऊ शहर से दस किलो मीटर दूर गढ़ी कनौरा गांव है। इस शहर से सटे इलाके में है ‘श्रम विहार नगर’ जहां पर हजारों लोग प्लास्टिक पन्नी और टूटी लकडि़यों से बनी झुग्गी-झोपड़ीयों में रहते हैं। इन झोपडि़यों में कुछ लोग साठ सालों से और कुछ पच्चीस सालों से रह रहे हैं। यह लोग प्रवासी हैं और इस उम्मीद से यहां आये थे कि शायद यहां की सरकार इनकी मदद कर सकेगी। लेकिन बीते साठ सालों में, लखनऊ शहर में रहते हुए माननीय मुख्यमंत्री का इस तरफ ध्यान ही नहीं गया। सरकार जरुर बदली पर नजर कभी नहीं बदली।
इस बारे में पचास वर्षीय पन्ना देवी का गुस्सा जायज लगता है। हर साल आंधी और पानी उनकी झोपड़ी को उड़ा ले जाते हैं। पन्ना देवी, देवरिया जिले की हैं और शादी के बाद से यहीं हैं। उनके पति का पंद्रह साल पहले देहांत हो गया था। तब से मजूरी कर, वह अपने दो बच्चों के साथ यहां झोपड़ी में रह रही हैं। वह कहती हैं, ‘‘रेलवे ने पचास साल पहले इंदरा गांधी के समय हमें इस जमीन में बसाया गया था। तब यहां पर लोग मुर्दा जलाया करते थे। हम लोग रहने लगे तो लोगों का डर खत्म हो गया नही तो कोई इस गली से नहीं निकलता था। बस एक ही दुख है कि हमारे घर नहीं बने है’’।।
102a0bab-e3f0-4698-b3be-de523d8739bd copyवहीं पास में ही खड़ी सुनीता ने बताया कि 2009 में मायावती के समय ‘सर्वजन हिताय गरीब आवास मालिकाना हक योजना’ के तहत 116 लोगों को रसीद काट के दी गई थी कि यह जमीन तुम्हारी है। उस समय जमीन बीस-बीस रूपये प्रति वर्ग मीटर के अनुसार दी गयी थी। लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ और हम झोपड़ी में रह रहे हैं। कई बार डूडा विभाग भी गये लेकिन वहां भी हमारी किसी ने नहीं सुनी, जबकि हमसे हजारों रूपये भी ले लिए गये हैं।
इन्ही के बीच की कौशल्या का गुस्सा देख कर तो हम भी डर गये थे। उनका कहना था कि हमें यह जमीन इंदरा गांधी ने दी थी। तबसे अब तक हालात नहीं सुधरे हैं। मकान इसलिए नहीं बनवाते है कि रोज कोई न कोई हमें परेशान करने चला आता है।
सभासद सन्तोष चन्द्र का कहना है कि यह बस्ती 1983 में बसी थी। यह लोग पहले कानपुर में रहते थे। इनमें से ज्यादातर बिहार के लोग है। तब जिला विधायक प्रेम तिवारी ने लोगों को यहां रहने के लिए कहा था। वर्ष 2000 में कुछ लोगों पर रेलवे ने मुकदमा लगा दिया गया था कि वह जमीन रेलवे की है और उन्हें जगह खाली करनी पड़ेगी। लेकिन जब कोई यह जगह खाली करने को तैयार नहीं हुआ तब इस केस पर रोक लगा दिया गया। लेकिन हम कोशिश में लगे हैं कि यहां से किसी गरीब की बस्ती नहीं हटाई जाये।
इसके आलावा, 40 लोगों को कांशीराम योजना के तहत आवास भी मिले हैं। पर लोगों ने उन्हें किराए पर उठा रखा है। इन्ही में से पांच ऐसे परिवार हैं जो भीख मांग कर पेट भरते हैं। 2500 लोगों को समाजवादी आश्रम का फार्म भरवाया है। पानी के लिए 6 टंकी रखवाई हैं। यहां पर पचास हजार की आबादी है जिसमें 2230 वोटर हैं।

रिपोर्टर – लक्ष्मी शर्मा और मीरा जाटव