खबर लहरिया औरतें काम पर उना यात्रा के लिए क्यों गई दलित महिलाएं?

उना यात्रा के लिए क्यों गई दलित महिलाएं?

dalit women ladies finge ww rगुजरात के उना में पिछले महीने हुई दलित हिंसा के बाद राज्य के दलितों ने “आज़ादी कूच” नामक आन्दोलन का एलान किया। इस विरोध प्रदर्शन की शुरुआत 5 अगस्त को अहमदाबाद से हुई जो 15 अगस्त को उना पहुँच कर अभी भी जारी है। गुजरात के कई दलित संघठनों ने इस आन्दोलन का समर्थन किया है। उनमें से एक है नवसर्जन ट्रस्ट, जो गुजरात का सबसे बड़ा दलित संघठन माना जाता है। इतना ही नहीं इस विरोध प्रदर्शन में शक्तिशाली रूप से दलित महिलाओं की भागीदारी भी सामने आई है।
आइये मिलते है नवसर्जन ट्रस्ट की पहली दलित महिला मंजुला प्रदीप से। 46 साल की मंजुला अब ट्रस्ट की कार्यकारी निर्देशिका हैं।
फिलहाल गुजरात में माहौल कैसा है?
हमने आज़ादी कूच यात्रा निकाली थी जो 15 अगस्त को ख़त्म होने वाली थी। लेकिन अब यह आन्दोलन अभी रुकेगा नहीं। हम सिर्फ उना के दलित हिंसा केस में न्याय नहीं मांग रहे हैं, बल्कि पीढ़ियों से हो रहे भेदभाव का समाधान मांग रहे हैं। जब तक छुआछूत और जातिवाद समाज में है, तब तक हमारा आन्दोलन भी जारी रहेगा।
हम अगस्त के महीने के अंत तक सौराष्ट्र और राजकोट में हम महासभा का आयोजन करेंगे। हमे उम्मीद है कि पचास हज़ार दलित युवा और महिला आयेंगे। पटेलों के गढ़ उत्तर गुजरात में भी हम एक सभा करेंगे। ऐसे-ऐसे हम आनंद, खेडा, बरोदा और सूरत में महा सभा का आयोजन करेंगे। हम चाहते है कि दलित युवा अपने अधिकारों के बारे में सीखें। यह प्रदर्शन सिर्फ कुछ दलितों तक सीमित नहीं है, गुजरात के सारे 32 दलित जाति शामिल हुए है, चाहे वह बुनकर हो या फिर सफाई कर्मचारी।
इस आन्दोलन में दलित महिलाओं की भागीदारी के बारे में कुछ बताएं?
मैं कैसे बताऊं आपको कि दलित महिलाएं किस-किस प्रकार के प्रदर्शन पर निकल रही हैं! आनंदी नाम की दलित महिला संघठन ने भी धरना दिया है और मैं एक ग्रुप के साथ वड़ोदरा में थी। वहां ऐसा हुआ कि महिलाएं डी.एम. से मिले बिना हटने को तैयार नहीं थी, वह सब बैठ गयी और हाय-हाय करने लगी। ऐसे प्रदर्शन देखने में भी प्रभावशाली होते है।
जब मैं नवसर्जन में जुड़ी थी तब दलित महिलाओं की भागीदारी अधिक नहीं थी। ऐसा कोई आन्दोलन नहीं था जो महिला मुद्दे उठा रहा था। दलित महिला शक्तिशाली है, उनकी आवाज़ मजबूत है लेकिन इतिहास में महिलाओं के लिए कोई जगह ही नहीं है।
इस आन्दोलन को देखिये, जहाँ दलित महिलाओं ने अपनी रणनीति बना ली, वह किसी के लिए नहीं रूकती हैं और जातिवाद के खिलाफ धरने पर उतर आई हैं। महिला आयोजित आन्दोलन कम है, लेकिन जब होते हैं तो तूफ़ान खड़ा कर देते हैं।

द लेडीज फिंगर