खबर लहरिया बाँदा इस गांव में स्कूल नहीं, चलती है मनमानी

इस गांव में स्कूल नहीं, चलती है मनमानी

जि़ला बांदा, ब्लाॅक नरैनी, ग्राम पंचायत नेढ़आ, मजरा बडैछा। रंज रंज नदी और पहाड़ के बीच बसा यह गांव स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास के लिए रो रहा है। अधिकारी कभी नहीं जाते। इसलिए सरकारी योजनाओं की हालत का अंदाज़ा लगाया ही जा सकता है। स्कूल, आंगनबाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र और योजनाओं में मनमानी तरह से काम चलता है। नरैनी-पन्ना (मध्य प्रदेश) रोड पर पड़ने वाले छोटे कस्बे नहरी से सात किलोमीटर दूर बसा है यह गांव। नहरी से बड़ैछा के लिए सिर्फ एक आॅटो चलता है। यह सुबह गांव से आता है और शाम को वापस जाता है।

banda taza school

बाँदा स्कूल

छह घंटे की जगह ढाई घंटे ही खुलता स्कूल
स्कूल खुलने का समय सुबह सात बजे है और बंद होने का समय दोपहर एक बजे। यानी छह घंटे स्कूल खुलना चाहिए। मगर यह सुबह साढे नौ से दस के बीच खुलता है और दोपहर बारह बजे से पहले ही बंद हो जाता है। गांव के विनोद, आशुतोष ने बताया कि स्कूल मनमाने समय से खुलता और बंद होता है। दो ढाई घंटे से ज़्यादा स्कूल नहीं खुलता। यही हाल जूनियर का भी है।
कक्षा छह में इकतालिस, कक्षा सात में चैंतिस और कक्षा आठ में सैंतिस बच्चे हैं। लेकिन इन कक्षाओं के लिए हर विषय की नौ-नौ किताबें आई हैं।

बिखरा पड़ा मिड डे मील, शौचालय में लगा ताला
लगभग ग्यारह बज रहे थे जब खबर लहरिया की पत्रकार प्राथमिक और जूनियर स्कूल पहुंचीं। बच्चे मैदान में थे। पूरे मैदान में सोयाबीन की बड़ी और चावल बिखरे थे। बच्चों से पूछने पर पता चला कि मिड डे मील का खाना ऐसा होता है कि जिसे कुत्ते भी न खाएं। इसलिए इसे वे फेंक देते हैं। यह खाना जूनियर स्कूल का था। हैडमास्टर ने जब बच्चों से खाना फेंकने का कारण हमारे सामने ही पूछा तो कक्षा छह की आरती और कक्षा सात के फूलचंद्र ने कहा कि खाना खाने लायक होता नहीं तो फेंके न तो क्या करें। जूनियर में एक सौ बारह बच्चों में से तिरेपन बच्चे ही आए थे। इनमें से ज़्यादातर बच्चों को सौ तक गिनती भी नहीं आती थी। लड़कियों ने बताया कि शौचालय टूटा है और गंदा पड़ा रहता है। एक शौचालय साफ रहता है। लेकिन इसमें ताला पड़ा रहता है। केवल हैडमास्टर ही उसमें जाते हैं। लड़कियों ने कहा कि हमें शौच के लिए घर जाना पड़ता है।
प्राथमिक स्कूल में न खाना न पढ़ाई
प्राथमिक विद्यालय में तो खाना बना ही नहीं था। खाना न बनने का कारण पता चला कि दोनों स्कूल की रसोईया बैंक गई थीं। उनको खाना बनाने का पैसा जुलाई से नहीं मिला था। स्कूल की बाउंड्री टूटी थी। स्कूल के शौचालय टूटे थे। प्रथामिक विद्यालय में कुछ लोग कुर्सियों पर बैठे हंसी मज़ाक कर रहे थे। हैडमास्टर कक्षा में पढ़ाने की जगह गांववालों से बांते करने में व्यस्त थे। हैडमास्टर ने बताया कि एक सौ छब्बीस बच्चों का नामंाकन है। आज पिचहत्तर बच्चे आए हैं। बाकी बच्चे घर चले गए। स्कूल में दो सहायक मास्टर और एक शिक्षामित्र हैं।