खबर लहरिया वेब स्पेशल “अर्जुन पुरस्कार” से क्यों दूर हैं महिलाएं?

“अर्जुन पुरस्कार” से क्यों दूर हैं महिलाएं?

 

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वो बेहद ख़ुशी का पल था, जब हमने सुना कि इस साल अगस्त 2016 के ग्रीष्मकालीन रियो ओलंपिक के लिए भारतीय महिला हॉकी टीम को चुना गया है और यह खुशी उस वक़्त दोगुनी हो गई जब,भारतीय हॉकी ने अर्जुन पुरस्कार के लिए महिला हॉकी टीम की कप्तान रितु रानी को चुना।

भारतीय टीम का नेतृत्व कर 2013 के एशिया कप और 2014 के एशियाई खेलों में भारत को तीसरे स्थान पर लाने वाली 23 वर्षीय रितु रानी, हरियाणा के शाहबाद से है।

खेल एवं युवा मंत्रालय के द्वारा राष्ट्रीय खेल में उत्कृष्ट उपलब्धि पाने पर अर्जुन पुरस्कार दिया जाता है। इस पुरस्कार को 1961 में स्थापित किया गया था, वर्तमान में अर्जुन पुरस्कार के रूप में एक पुस्तक और 5,00,000 रुपये का नकद पुरस्कार तथा एक कांस्य प्रतिमा दी जाती है।
हमने पिछले दस वर्षों में अर्जुन पुरस्कार के प्राप्तकर्ताओं को देखा, और पाया की यह पुरुस्कार महिलाओं से दूर है! लेकिन ऐसा क्यों?
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अर्जुन पुरस्कार सबसे अधिक महिलाओं को वर्ष 2013 में दिया गया है, जो 53.33% था। जबकि 2010 में सबसे कम केवल 20% महिलाओं को दिया गया था।

भारत में खेलों के लिए दिए जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार “राजीव गांधी खेल रत्न” का भी कुछ यही हाल है। राजीव गांधी खेल रत्न 1991 से शुरू किया गया था, जिसमें अब तक 28 प्राप्तकर्ताओं में से केवल 9 महिला रही हैं।

हॉकी की गोल्डन गर्ल्स और रितु रानी को जीत की शुभकामनाएं। आशा है इस साल अर्जुन पुरस्कार में महिलाओं की भागीदारी बराबर रहेगी।