खबर लहरिया औरतें काम पर सूखे की मार झेलतीं अजनर की महिलाएं

सूखे की मार झेलतीं अजनर की महिलाएं

7b13f8a3-9e6b-4bb5-9cbf-e276db92a15f copyगीता की उम्र अठारह साल है। आज गीता दो-तीन दिन बाद वापस हैंडपंप की कतार में खड़ी है। पिछले कुछ दिनों से गीता तेज कमर दर्द के कारण उठ भी नहीं पा रही थी। लेकिन लगता है उसकी तबियत थोड़ी ठीक हुई, इसलिए वह पानी भरने अपने गांव के हैंडपंप पर पहुंच गयी है। दिखने में गीता छोटी सी है, चेहरा थका हुआ है, बुखार के कारण इस भीषण गर्मी में भी उसने कमीज के ऊपर जैकेट पहनी है। दो दिन बिस्तर पर लेटने के बाद भी गीता की ऊर्जा उसे पानी भरने के लिए लाइन तक खिंच लायी है।
बीएससी की छात्रा होते हुए, गीता का सपना है कि वह डॉक्टर बने।. लेकिन उसके सूखाग्रस्त गांव में पानी की किल्लत के कारण पिछले साल वह मात्र 70 दिन कॉलेज जा पायी है और इस साल शायद उससे भी कम। गीता अब ज्यादा से ज्यादा समय, सुबह से लेकर शाम तक, अपने घर से 5 हजार कदम दूर लगे हैंडपंप पर बिताती है। उसके परिवार में 15 लोग हैं, जिनमे से उनकी मां, भाभी और वह पानी लेके आने का काम करती हैं। वह बारी-बारी घर से बर्तन समेट कर लाती है और हर चक्कर में 30 लीटर पानी से भरे बर्तनों का बोझ उठाती है। यह कहानी सिर्फ गीता की नहीं है, बल्कि उसके मोहल्ले की हर लड़की, हर महिला की है।
गीता महोबा जिले के जैतपुर ब्लॉक के अजनर गांव की रहने वाली है। अजनर, जिसकी आबादी लगभग 11 हजार है, एक बड़ा ग्राम पंचायत वाला गांव माना जाता है। इस गांव में कुल 85 हैंडपंप हैं, लेकिन चालू हालत में दस से कम हैंडपंप है।.
2f0296b7-36b4-41c0-9952-287da4f6d2bb copyजैतपुर ब्लॉक में पानी की समस्या इतनी गहरी है कि कुछ साल पहले ही इसे डार्क जोन घोषित कर दिया गया था। हाल ही में महोबा जिले को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की तू-तू-मैं-मैं हुई थी। उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव अलोक रंजन, खेती के विशेषांक और मीडिया द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, महोबा जिला बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त इलाकों में इस गांव की हालत सबसे बद्तर है। इसके बावजूद ,केंद्र सरकार द्वारा भेजी गयी पानी की ट्रेन को यूपी सरकार ने लेने से मना कर दिया।

अखिलेश यादव और नरेन्द्र मोदी की बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री का कहना था कि सूखे के प्रबंध में “नारी शक्ति” की भागीदारी बढ़नी चाहिए. लेकिन प्रधानमंत्री जी से यह सवाल पूछना चाहिए कि आज बुंदेलखंड के हर जिले, ब्लॉक और गाँव में सूखे के कमर-तोड़ बोझ को सबसे ज्यादा कौन उठा रहा है? क्या वह नहीं जानते कि सूखे की मार सबसे ज्यादा महिलाओं पर ही पड़ी है!

विशेष रिपोर्ट
अप्रैल का एक गर्म दिन और लू के थपेड़े चेहरे को जला रहे थे उस वक्त खबर लहरिया अपने दौरे के लिए अजनर गांव पहुंचा। गांव के 28 मोहल्लों में, फिलहाल तीन टैंकरों का पानी ऊपरी बस्तियों में पहुंचया जा रहा है। जो प्रधान के घर के इर्द-गिर्द बसी हुई हैं।
जैतपुर ब्लॉक के बीडीओ का कहना है कि ब्लॉक में ऐसे कुछ इलाके हैं जहां सूखे और पानी की स्थायी समस्या है, जैसे शागुनिया, महुआ बांध और मुढ़ारी गांव। ब्लॉक में पानी की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने सात गांवों में टैंकर की व्यवस्था की है। जिनमे से एक अजनर ग्राम पंचायत भी है।

जरा सोचिये-
औसत रूप में हर परिवार में 4-6 लोगों की संख्या है, जिन्हें कम-से-कम 400 लीटर पानी प्रति दिन की जरुरत हैं। गाय, भैंस जैसे बड़े जानवर दिन में दो बार कुल 120 लीटर पानी पीते हैं। जबकि बकरी जैसे छोटे जानवर 30 लीटर पी जाते हैं। इस पर मिथिला का कहती हैं कि हर दिन वह सिर्फ 3 कैन पानी भर पाती हैं, यानी 90-135 लीटर। इतने पानी में मिथिला क्या कर पाएगी?

95f10712-b764-4fbc-b448-8537d54b09b0 copyअगर श्रीराम मोहल्ला की बात करें तो, इस मोहल्ले में लगभग 100 परिवार बसे हुए है। जिनमें सवर्ण जाति के राजपूत, तिवारी, कुमार और पंडित अधिक हैं। मोहल्ले में रहने वाली रामसरी बताती है कि उनके यहां का हैंडपंप सूख चुका है। फिर भी यदि एक दो घंटे मेहनत करो तो एक बाल्टी पानी निकलता है। टैंकर श्रीराम मोहल्ला होते हुए निकलता जरूर है, लेकिन सिर्फ 15 मिनट रुकता है। “लोग दस मिनट में टैंकर खाली कर देते हैं। कभी हमारा नंबर आता है और कभी नहीं”।
अब जरा एक नजर अजनर के पुरुषों पर भी डालते हैं कि इस सूखे में वह क्या कर रहें हैं? हर मोहल्ले में, पुरुषों की मंडली चौपाल पर बैठी मिलेगी या जुआ खेलते हुए देखी जा सकती है। युवा लड़के नए-नए कपड़े पहन कर, हाथ में मोबाइल लिए घूमते-फिरते नजर आयेंगे। लेकिन औरतें खेत में, रसोई, हैंडपंप या टैंकर के पास पानी भरती मिलेंगी। इस सूखे में पूरे परिवार की जरूरतों को सिर्फ और सिर्फ यह महिलाएं ही पूरा कर रही हैं।
अजनर की लगभग तीन चौथाई आबादी को टैंकर का पानी नसीब नहीं हो रहा है। जिनमें से अधिकतर आबादी दलित लोगों की है। इस बारे में रोशनी ने भी हमें जानकारी दी। उसका घर हैंडपंप से 5 हजार कदम दूर हैं। गांव के छोर पर दो हैंडपंप लगे है, जिन्हें मीठी नल के नाम से जाना जाता है। हैंडपंप के आस-पास सैंकड़ो मधुमखियां मंडराती रहती हैं। शायद इसी कारण नल का नाम मीठी नल पड़ा है।
38ce4612-d5dd-4116-81e5-11c6ea79f42b copyइस मीठी नल से गांव की आधी आबादी अपनी प्यास बुझाती है। हर रोज रोशनी अपनी साइकिल पर 3-4 पानी की कैन लेकर हैंडपंप की कतार में खड़ी रहती हैं। हर चक्कर में 30 लीटर पानी लेकर वह दिन के तीन चक्कर काटती हैं।
मीठी नल पर दिन भर महिलाओं की कतार लगी रहती हैं। पानी के मुद्दे को लेकर पूरे-पूरे दिन, हैंडपंप पर, घरों में और चौपाल पर चर्चा, विवाद, मुठभेड़ होते रहते हैं।
गांव के रामोतार का कहना है कि पानी पर ही नहीं बल्कि जाति पर भी विवाद होता रहता है। “अगर दलित जाति का व्यक्ति सवर्ण जाति के व्यक्ति के पीछे कतार में खड़े हैं और पानी की अत्यधिक आवश्यकता होती है तो लाइन तोड़ने नहीं देते हैं।”

  •  जैतपुर ब्लॉक में कुल हैंडपंप है 2949, जिनमे से 110 रिबोर की सूची में हैं, 206 खराब हो चुके हैं इनमें से 105 पूरी तरह से सूख चुके हैं।
  • भूजल स्तर 140 फीट तक गिर चुका है।
  •  कुल 154 तालाब है, जिनमे से 95 तालाब एक हेक्टेयर से कम हैं और 59 एक हेक्टेयर से बड़े हैं। 154 तालाबों में 143 सूखे पड़े हुए है!
  • जैतपुर ब्लॉक के 63 ग्राम पंचायतों के लिए सिर्फ 29 हैंडपंप मैकेनिक को परिक्षण दिया गया है!
  • अजनर ग्राम पंचायत
  • आबादी है 11 हजार
  • कुल हैंडपंप है 85, जिनमे से लगभग दस हैंडपंप काम कर रहे हैं।
  • नियमित कुएं 16 हैं, लेकिन सारे सूख चुके हैं।
  • अजनर के चार तालाब पिछले दो महीनो से सूखे पड़े हुए हैं।
  • 2006-07 की अजनर पेयजल योजना के अंतर्गत 4 पंप, 9 राइजिंग प्लांट और एक टंकी बनायी गई थी, जिनमे से सिर्फ 40 प्रतिशत पानी पंप हो रहा है।

प्रधान के प्रतिनिधि सुरेन्द्र कुमार तिवारी का कहना है कि पानी की कमी उनके जीवन के हर पहलु में दिखने लगी हैं। लोग हफ्ते में एक बार नहाने लगे हैं, हफ्ते में एक बार कपड़े धो रहे हैं, साबुन का उपयोग कम ही करते हैं और खाने में भी पानी कम इस्तेमाल कर रहे हैं। पीने के पानी की जरुरत को छोड़कर, बाकी सब कामों में तंगी कर रहे हैं। इतना ही नहीं सुरेन्द्र कुमार कहते हैं कि जनवरी से लेकर अब तक लगभग 200 से ऊपर मवेशियों की मृत्यु हो गई है।
आज गीता, रोशनी और उनकी सहेलियां रानी, प्रियंका और कई लड़कियां कॉलेज नहीं जा पा रही हैं। उनके परिवारों की सभी महिलाएं पानी भर के लाने में लगी रहती हैं।
गांव में बिमारी का शिकार भी महिला बन रही हैं और सूखे का भार भी उठा रही हैं।

रिपोर्टर – प्रियंका कोटमराजू और श्यामकली