खबर लहरिया ताजा खबरें महिला सशक्तिकरण और राजनितिक खेल, जानिए तीन तलाक के सारे पहलू

महिला सशक्तिकरण और राजनितिक खेल, जानिए तीन तलाक के सारे पहलू

बीते दिनों तीन तलाक की चर्चा देशभर में चलती रही सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिनों तक चली कार्यवाही में पक्ष और विपक्ष की दलीले सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख दिया लिया जिसे आने वाले दिनों में सबके सामने रखा जायेगा।
तीन तलाक की बहस नई नहीं हैं बल्कि 1985 में शाह बानो ने इसके खिलाफ पहली बार सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी। इस कानूनी लड़ाई में वह जीत भी गयीं थीं, लेकिन उस समय राजनीतिक लाभ के लिए इस फैसले को वापस ले लिया गया।
इसके बाद, 2016 में काशीपुर की शायरा बानो ने फिर से इस मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया। इस विषय को जमीनी स्तर पर जानने के लिए आइये आली संस्था की कार्यकारी निर्देशक रेनू मिश्रा से समझते हैं कि वाकई तीन तलाक महिला उत्थान के लिए मील का पत्थर हैं? और  महिला सशक्तिकरण के लिए देश में अभी क्या बाधाएं है।
रेनू कहती हैं, कानून तो 2003 में ही बन गया था जिसक बाद जो भी महिला इस तरह के तलाक से जूझ रही हैं वह कोर्ट में जा कर न्याय मांग सकती हैं दूसरी बड़ी बात ये है कि सिर्फ कानून से नहीं समाजिक चेतना और जागरूकता से ही इस तरह की कुरीतियों से निपटा जा सकता है
भाजपा सरकार के महिला उत्थान में तीन तलाक का विषय सबसे ऊपर रहा, जिसकी वजह से भाजपा 2014 में अपार बहुमत के साथ सत्ता  में आई, लेकिन क्या वाकई सरकार महिलाओं की बराबरी और उनके सशक्तिकारण के लिए गंभीर हैं? इस बारे में रेनू का कहना है कि सरकार महिलाओं के लिए अच्छी नीयत से कुछ करना ही नहीं चाहती यदि ऐसा होता तो अब तक महिलाओं की सामजिक स्तिथि सुधर चुकी होती सरकार हर बार चुनावों में महिलाओं को सिर्फ चुनावी मुद्दा बनाना चाहती हैं
तीन तलाक से निपटने के लिए देश भर में समान नागरिक संहिता यानि यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की मांग चल रही है। जबकि हमारे देश में पहले से ही मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिन्दू पर्सनल लॉ, ईसाई पर्सनल लॉ हैं। ऐसे में क्या महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने में समान नागरिक कानून मदद करेगा? इस सवाल का जवाब देते हुए रेनू ने बताया, मुझे समझ नहीं आता कि समान नागरिक संहिता कानून लाने से क्या बदल जायेगा क्योंकि सिविल कानून तो है ही उसके बाद समान नागरिक संहिता कानून लाने का क्या औचित्य है? दूसरी अहम बात ये कि यहाँ भी समान नागरिक सहिंता लागू है वहां क्या परिणाम रहे हैं उन पर गौर करें सबसे जरुरी यह कि वहां महिलाओं को क्या लाभ मिला है  वह बताया जाये
तीन तलाक के साथ ही मुस्लिम धर्म में अन्य महिला विरोधी प्रथाओं को हटाने की बात भी होने लगी है, लेकिन हमें ये नहीं भुलना चाहिए कि अन्य धर्मों में भी इस तरह के कई रिवाज हैं, जो महिलाओं को पीछे धकेलने का काम करते हैं तो फिर क्यों हमेशा से मुस्लिम महिलाओं को ही अधिक सताई हुई महिला के रूप दिखाया जाता हैं? इस बारे में रेनू दो टुक जवाब देते हुए कहती हैं कि नहीं ऐसा नहीं है, हर धर्म में महिलाओं की हालात बुरी है दरअसल, इन अलग अलग धर्मों ने महिलाओं को नियंत्रित करने के लिए कई पाबंदियां लगायी और फिर महिलाओं पर विजय प्राप्त की आज मुस्लिम महिलाओं की बात इसलिए भी की जाती है क्योंकि उनके मुकाबले बाकी धर्मों की महिलाएं अधिक जागरूक हैं हालांकि ऐसा कहना सौ फीसदी सही नहीं होगा!
महिला के सशक्तिकरण की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी रेनू महिलाओं की आज़ादी और उनके निर्णय लेने की क्षमता को मानती हैं वह कहती हैं कि जिस दिन महिलाएं अपनी इच्छा से अपने लिए सोचने लगेंगी उस दिन महिला सशक्तिकरण जरुर सम्भव हो सकेगा
खबर लहरिया भी तीन तलाक जैसे रिवाजों के खिलाफ हैं लेकिन महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और कुरीतियों की सूची बहुत लंबी हैं, जिस पर ठोस कदम उठाये जाना बेहद जरुरी हैं। लेकिन क्या हमारी सरकारों में वाकई इतना साहस है कि वह महिलाओं को वोट बैंक समझ कर उनके उत्थान के लिए उन्हें आगे लाने का काम कर सकेगी?

रिपोर्टर- नसरीन 

Published on Jul 21, 2017